Soybean ki kheti kaise karen? सोयाबीन की खेती कैसे करें?

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Soybean ki kheti kaise karen? सोयाबीन की खेती कैसे करें?

सोयाबीन भारत में तिलहनी फसल के रूप में जाना जाता है। यद्यपि ये एक दलहनी फसल किन्तु तेल की प्रचुरता होने के कारण देश में तेल की खपत की आवश्यकता पूरा करने में सहायक होने के कारण इसे तिलहनी फसल की श्रेणी में रखा गया है। इसमें लगभग 20 % तेल, 40 % प्रोटीन एवं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी गुणों से भरपूर होने कारण सोयाबीन को सुपरफूड के रूप में जाना जाता है। तेल निकालने के बाद भी इसकी खली में अच्छी मात्रा में प्रोटीन एवं खनिज लवण की मात्रा शेष रहती है। जिसके कारण पशु आहार एवं खाद के रूप में उपयोगी होता है।

भारत में सोयाबीन की उपज महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में सबसे अधिक होती है वर्ष 2019 में भारतीय वैज्ञानिको द्वारा सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली कीट प्रतिरोधी एमएसीएस 1407  किस्म विकसित की गयी है। जो कि पश्चिम बंगाल, असम, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है।

किसानो के लिए सोयाबीन एक लाभदायक नकदी फसल है। क्योंकि कम उर्वरक का प्रयोग करने पर भी अच्छी उपज प्राप्त होती है। इसकी फसल मृदा की उर्वरता बढ़ाने में सहयोग करती है यह भूमि में नाइट्रोजन का जमाव करती है। जिससे अगली फसल के लिए 40 % नाइट्रोजन भूमि में अवशोषित रहता है। जिसके कारण फसल चक्र पद्धति में सोयाबीन की फसल उपयुक्त रहती है। आइये देखें सोयाबीन की खेती करने की जानकारी।

 

Climate for Cultivation  खेती के लिए जलवायु 

सोयाबीन की खेती के लिए गर्म एवं नम जलवायु उपयुक्त होती है। भारत में इसकी खेती खरीफ के मौसम में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए जून के अंतिम सप्ताह से 15 जुलाई तक का समय उपयुक्त रहता है। वायुमंडल एवं मृदा का तापमान 28 – 30 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

उदासीन पीएच स्तर एवं उचित जल निकासी वाली हल्की से गहरी काली मिटटी  में सोयाबीन की फसल के लिए उपयुक्त होती है।

Farm Preparation खेत की तैयारी 

गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करें। जिससे खरपतवार के बीजों, कीड़ों एवं रोगजनित कीटों की संख्या में कमी आती है तथा भूमि की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है। इसके बाद खेत में पूर्व फसलों के जड़ को निकालने के बाद सड़ी हुयी गोबर की खाद अच्छी तरह मिला दें। फिर कल्टीवेटर से दो बार जुताई करके खेत की मिट्टी के ढेले को फोड़कर मिट्टी को भुरभुरी कर लें फिर पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को समतल करके तैयार कर लें।

Sowing Time and Seed quantity   बोने का समय एवं बीज की मात्रा 

सोयाबीन की खेती जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई सप्ताह तक की जाती है। बुवाई के दौरान भूमि में काम से कम 10 सेमि की गहराई तक पर्याप्त नमी होना आवश्यक है। बुवाई सीड ड्रिल अथवा हल के साथ नायला बाँधकर पंक्तियों में 30 -45 सेमि की दूरी पर करें प्रति हेक्टेअर खेत में 4 .50 लाख पौधों की संख्या रखना चाहिए।

छोटे एवं माध्यम दाने वाले 80 किलो बीज तथा मोठे दाने वाले 100 किलो बीज प्रति हेक्टेअर भूमि के लिए उपयोग करने से बीजों की अच्छे अंकुरण में मदद मिलती है।

Seed Treatment  बीजोपचार 

बीजों को बोन से पहले फफूंद नाशक दवाओं से उपचारित करना आवश्यक है। इसके लिए 3 ग्राम थायरम अथवा 1 ग्राम कार्बोंडेजिम से प्रति किलो की दर बीज को उपचारित करें। भली भाँति बीजों को उपचारित करने के लिए ड्रम में डालकर फफूंदनाशक से बीज उपचारित करें। जिससे बीजों पर दवा की एक पर्त बन जाए।

इसके बाद बीजों को जीवाणु कल्चर से उपचारित करने के लिए 1 लीटर गर्म पानी में 250 ग्राम गुड़ का घोल तैयार करें। इसके बाद घोल में राइजोबियम कल्चर + 500 ग्राम पी.एस.बी कल्चर प्रति हेक्टेअर की दर से  मिलायें। इसके बाद कल्चर मिश्रित घोल को बीजों में हल्के हाथ से मिलाने के बाद छाया में सुखाकर तुरंत बुवाई करने के लिए प्रयोग करें।

उर्वरक

बुवाई से पहले खेत में 20 किलो नाइट्रोजन + 40 किलो फॉस्फोरस + 40 किलो पोटाश प्रति हेक्टेअर की दर से खेत में डालें।

Improved Varieties of Soybean Seeds सोयाबीन बीजों की उन्नत किस्में 

पी.के 472

इस किस्म की बीज पर्ण धब्बा, काला मोजेक रोग प्रतिरोधी होने के साथ ही कई प्रकार के कीटों एवं बैक्टीरियल रोगों से भी प्रतिरोधी है। इसके 100 दाने का भार 13  – 15 ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 110 -115 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।

जे.एस 335

ये  जीवाणु एवं अंगमारी रोगों के लिए प्रतिरोधी है। किस्म के दानों की फसल को पकने में 100 -105 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।

मैक्स 450

इसके 100 दाने का भार 8 -10 ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 105 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।

एन.आर.सी 12 (अहिल्या -2 )

इसके 100 दाने का भार 10- 12 ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 100 -105 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है। यह किस्म जीवाणु पट्टी धब्बा एवं अन्य पर्ण भक्षी कीड़ों से प्रतिरोधी है तथा मोजेक एवं तना मक्खी के लिए सहनशील है।

एन.आर.सी 37 (अहिल्या -4)

इसके 100 दाने का भार 10- 13 ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 100 -105 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है। यह किस्म जीवाणु पट्टी धब्बा तथा तना गलन रोग से प्रतिरोधी एवं मोजेक एवं तना मक्खी के लिए सहनशील है।

प्रताप सोया 1 (आर.ए.यू.एस 5)

इसके 100 दाने का भार 10- 12  ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 95 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है। यह किस्म पर्ण भक्षी कीटों, पर्ण धब्बा एवं तना सड़न रोग से माध्यम प्रतिरोधी है। गार्डन बीटल नामक कीड़े से अत्यधिक प्रतिरोधी है इस किस्म के बीज की फसल में तेल की मात्रा अधिक होती है।

जे.एस 93 -05

ये किस्म कई प्रकार के कीड़ों से प्रतिरोधी है इसके 100 दाने का भार 9 – 10 ग्राम होता है। इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 90 दिन का समय लगता है।

जे.एस 97 -52

इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 98 -102 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है।

जे.एस 95  -60

इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 85 -88 दिन का समय लगता है और पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है। यह किस्म जड़ सड़न , पर्णीय बीमारियों, पत्तियाँ चूसक एवं पत्तियाँ काटने वाले कीटों के लिए प्रतिरोधक क्षमता रखती है।

प्रताप राज – 24 (आर.के.एस -24)

इस किस्म के दानों की फसल को पकने में 95 – 100 दिन का समय लगता है और पैदावार 25 -30  क्विंटल प्रति हेक्टेअर होती है। यह किस्म गार्डन बीटल, सेमी लूपर तथा तम्बाकू इल्ली से माध्यम प्रतिरोधी है पीट विषाणु , चारकोल रोग तथा पत्ती धब्बा रोग से माध्यम प्रतिरोधी है।

Irrigation सिंचाई 

सोयाबीन की फसल को सामान्य वर्षा की स्थिति में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। किन्तु फूल आने एवं फलियों में दाना बनते समय वर्षा नहीं होने की स्थति में 1 – 2 सिंचाई आवश्यकता अनुसार करना चाहिए।

Crop Disease Management फसल रोग प्रबंधन 

पीलिया रोग

फसल में पीलापन दिखाई देने पर 1 .0 % गंधक के तेजाब या 5 .0 % फैरस सल्फेट का छिड़काव करें।

जड़ एवं तना गलन रोग

रोग प्रबंधन के लिए 1 -1 .5 किलो मैंकेजेब का 500 -700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेअर खेत के हिसाब से छिड़काव करें। रोग्रस्त पौधों को निकल कर खेत से बाहर करें एवं अगले वर्ष खेत में सोयाबीन की खेती न करें।

विषाणु रोग

सोयाबीन की फसल में येलो  मोजेक रोग मुख्य है। इस रोग में पत्तियाँ सिकुड़ जाने पर पत्तियों में नसे साफ़ दिखाई देने लगती हैं। ये धीरे -धीरे फ़ैल कर पुरे खेत की फसल को रोगग्रस्त कर देती हैं। इसकी रोकथाम के लिए डायमिथोएट या मेटासिस्टोक 500 -600 मिली फास्फोमिडोन 200 मिली दवा को 500 -600 लीटर पानी में मिलकर घोल का प्रति हेक्टेअर की दर से छिड़काव करें।

जीवाणु रोग

रोगग्रस्त पौधों की पत्तियाँ गिर जाती हैं। रोग के रोकथाम के लिए 2  ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 20 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। एक हेक्टेअर खेत के लिए 50 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन दवा की मात्रा की जरूरत होती है 15 दिनों बाद दूसरा छिड़काव करें।

पत्ती धब्बा रोग

पत्तियों पर हल्के भूरे से गहरे भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। रोकथाम हेतु एक से सवा किलो मैंकोजेब प्रति हेक्टेअर खेत की हिसाब से छिड़काव करें।

माइकोप्लाज्मा

रोगग्रस्त पौधे छोटे रह जाते हैं एवं जगह -जगह से फुटान हो जाता है। रोकथाम हेतु डायमिथोएट या मिथाइल डिमेटोन 500 मिली दवा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेअर की दर से खेत में छिड़काव करें।

Harvesting and Threshing  कटाई एवं गहाई 

फसल की कटाई पत्तियों के पीले पड़ते ही कर देनी चाहिए फसल की कटाई के समय दानों में नमी 15 -17 % रहना चाहिए

फसल कटाई के बाद 2 -3 दिन खलियान में उलट -पलट करते हुये सुखाने के बाद थ्रेशर से धीमी गति से गहाई करें गहाई के दौरान दाने के छिलका न उतरे और न ही दानों में दरार आने पाए

Storage भंडारण 

बीज का भण्डारण बीज को 3 -4  दिनों तक सुखाने के बाद करें इसे बोरियों में भरकर ठन्डे एवं हवादार स्थान पर रखना चाहिए।

Cost and Earnings in Soybean Cultivation सोयाबीन की खेती में

लागत एवं कमाई 

खेती में प्रति हेक्टेअर 30 -40 हज़ार रु की लागत आती है किसानों को प्रति हेक्टेअर खेत के हिसाब से रु 80 हज़ार से 1 लाख तक का लाभ प्राप्त होता है।

 

 

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स्त्रोत :

सोयाबीन की खेती

 

 

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