Lauki ki Unnat Kheti Kaise Kare In Hindi लोकी की खेती कैसे करे

 

लोकि की उन्नत खेती एवं फसल सुरक्षा उपाय             आज हर किसान चहता है की कम खर्च में उन्नत खेती की जाये की जिससे किसान को अधिक मुनाफा मिल सके इसके लिए हमें बीज उपचार की ।आवश्यकता होती है ।तथा लोकि की अच्छी फसल के लिए तथा उसकी वृद्धि के लिए उसे 25 से 30 डिग्री तापमान पर रखा जाये ॰इसकी खेती के लिए उपजाऊ दोमट भूमि झा पानी का निकास अच्छा होता है ।लोकि की खेती गर्मी और वर्षा ऋतू दोनों में की जा सकती है ।

२) लोकि की अच्छी किस्मे …..

* पूषा समर लॉन्ग                                                 यह किस्म गर्मी एवं वर्षा ऋतू दोनों में अच्छी उपज देती है ।। इस किस्म की बैल में फलः अधिक संख्या में होते है जिससे इसकी उपज अच्छी होती है इसमें 50 से 50 सेंटीमीटर लम्बे फलः होते है ।इससे इसकी उपज 70065 क्वांटल प्रीति एकड़ ली जा सकती है ॰       

२)पंजाब लॉन्ग                                                 * यह किस्म बहुत उपयोगी है इस लोकि की अगेती मध्यम आकर की लम्बे फलः वाली आँगुरी रंग की किस्म है इसके फलः लम्बे समय तक ताजे रहती है और इसकी उपज 150 क्वोंटल प्रीति एकड़ है ।

 ३) पूषा नविन                                               यह बसंत ऋतू की लिए सबसे उत्तम किस्म में से एक है इस किस्म के फलः अन्य किस्मो की तुलना में जल्दी तैयार हो जाते है फलः छोटे लम्बे बेलनाकार मद्य मोटाई के साथ हरे रंग के होते है फलः का लगभग 800गम के  आसपास होता है छोटे परिवा के रोंलिए इस किस्म के फलः बहुत हे आदर्श आकर व वजन के माने जाते है ।

४) पंजाब कोमल                                             * यह किस्म बहुत उपयोगी एवं अच्छी उपज देने वाली है फलः लम्बे हरे कोमल होते है वर्षा ऋतू में यह किस्म लगाना ज्यादा अच्छा होता है इसकी उपज 80 से 85 क्वोंटल प्रीति एकड़ होती है ।

५)कोयम्बटूर                                                    * यह दक्षिण भारत के लिए सबसे बढ़िया किस्म है यह वहा की लकड़ी एवं छारीय मिटटी में अच्छी उपज देती है जिसकी आवश्यक उपज 70 क्वोंटल प्रीति एकड़ होती  है .                                        ६)आजाद नूतन.                                             * इस किस्म को काफी प्रसिद्धि प्राप्त है क्यों की यह बीज की बुवाई के 60 दिन बाद ही फलः देना आरंभ क्र देती है फलः एक किलो से डेड किलो होते है और लगभग उपज 80 से 90 क्वोंटल प्रीति एकड़ तक आती है ।

लोकि के खेत की सिंचाई निराई व गुड़ाई कैसे करे    लोकि की फसल में सिचाई काफी महत्वपूर्ण है वैसे तो ग्रीष्म ऋतू में 4 से5 दिन के अंतराल से सिचाई करनी चाइये । सिचाई के एक दिन पश्चयात 200 gm  राख़ में 5 gm हींग खेत में मिला क़र देने से पौधे की बेल सुवस्त रहती है तथा फलः पकने से पहले बेल से टूटते नहीं है चूकि लौकी की फसल ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु की फसल है अतः इसमें खरपतवार अधिक संख्या में उगते हैं| इनको समय-समय पर खेत से निकालना जरूरी होता है तथा नियमित अंतराल पर निराई गुड़ाई करते रहना चाहिए| 

जलवायु 

लौकी की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु की आवश्यकता होती है यह पाले को सहन करने में बिलकुल असमर्थ होती हैइसके लिए 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापक्रम होना चाहिएI इसको गर्म एवम तर दोनों मौसम में उगाया जाता है  उचित बढ़वार के लिए पाले रहित 4 महीने का मौसम अनिवार्य हैI   लौकी की बुवाई गर्मी और वर्षा ऋतु में की जाती है अधिक वर्षा और बादल वाले दिन रोग व कीटों को बढ़ावा देते है |

बुवाई
नदियों के किनारे कछारी मिटटी में 1 मीटर. गहरी और 60 से. मि. चौड़ी नालियां बनाई जाती है खुदाई करते समय उपरी आधी बालू का एक और ढेर लगा लिया जाता है आधी बालू को खोदकर उसमे नालियों को लगभग 30 से. मी . तक भर देते है इन्ही नालियों में1.5 मीटर. की दूरी पर छोटे-छोटे थाले बनाकर उनमे बीज बो देते है दो नालियों के मध्य 3 मीटर का फासला रखना चाहिए पौधों को पाले से बचाने के लिए उत्तर पश्चिमी दिशा में टट्टियाँ लगा देनी चाहिए |

खाद एवं उर्वरक 

1. गोबर की खाद 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

2. नत्रजन 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर

3. फास्फोरस 40 किलो प्रति हेक्टेयर

4. पोटाश 40 किलो प्रति हेक्टेयर

 बीजों की बुवाई

सीधे खेत में बोन के लिए बीजों को बुवाई से पूर्व 24 घंटे पानी में भिगोने के बाद टाट में बांध कर 24 घंटे रखें। उपयुक्त तापक्रम पर रखने से बीजों की अंकुरण प्रक्रिया गतिशील हो जाती है इसके बाद बीजों को खेत में बोया जा सकता है। इससे अंकुरण प्रतिशत बढ़ जाता है।

बीज की मात्रा

4-5 की.ग्रा./हैक्टेयर

प्रमुख किट
लाल भृंग

यह किट लाल रंग का  होता हैं तथा अंकुरित एवं नई पतियों को खाकर छलनी कर देता हैं। इसके प्रकोप से कई बार लौकी की पूरी फसल नष्ट हो जाती हैं।

रोग नियंत्रण
नियंत्रण हेतु कार्बोरील 5% चूर्ण का 20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे या एसीफेट 75 एस. पी. आधा ग्राम/ लीटर पानी की दर से छिड़के एवं 15 दिन के अंतर पर दोहरावे।

एन्थ्रेक्नोज

यह रोग कोलेटोट्राईकम स्पीसीज के कारण होता है इस रोग के कारण पत्तियों और फलो पर लाल काले धब्बे बन जाते है ये धब्बे बाद में आपस में मिल जाते है यह रोग बीज द्वारा फैलता है |

रोकथाम

बीज क़ बोने से पूर्व गौमूत्र या कैरोसिन या नीम का तेल के साथ उपचारित करना चाहिए |

उपज 

यह प्रति हे. जून-जुलाई और जनवरी से मार्च वाली फसलों से 150-200 क्विंटल और 80-100 क्विंटल तक उपज मिल जाती है |

मुनाफा 

इस तरिके से आप खैती करके अधीक मुनाफा कमा सकते है।

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