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Organic Farming:Seed treatment ,Liquid Manure and Pest management जैविक खेती: बीजोपचार,कीटनाशक एवं तरल खाद प्रबंधन
रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग करने से खेती की लागत अधिक आने के साथ ही खेत की उर्वरा शक्ति भी कम होती जा रही है। इसके अतिरिक्त कृषि भूमि की मिटटी भी सख्त हो जाती है। जिससे सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरुरत पड़ती है। खेती की लागत कम करने एवं कृषि भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के लिए किसान भाईयों को जैविक खाद बनाने, नाशक जीव उपचार विधि एवं बीजोपचार की विधि की जानकारी होना आवश्यक है। जिससे अपने खेत में फसल उगाने के लिए आवश्यकता अनुसार खाद स्वयं तैयार किया जा सके। इससे किसानों की बाज़ार पर से निर्भरता कम होगी और खेती की लागत में भी कमी आ सकेगी। आइये देखें तरल खाद, कीटनाशक और बीजोपचार से सम्बंधित जानकारी।
Seed treatment Method बीजोपचार विधि
जैविक खेती की प्रक्रिया में फसल की उपज से सम्बन्धी समस्याओं से बचाव की रणनीति अपनाई जाती है। रोग रहित बीज एवं प्राकृतिक उपलब्ध संस्साधनो के प्रयोग से बीजों का उपचार करने के बाद रोपण करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। हालाँकि अभी तक कोई एक सवर्मान्य फार्मूला बीजोपचार विधि का नहीं उपलब्ध है। जिसके कारण विभिन्न प्रकार के बीजोपचार फॉर्मूले का उपयोग किसानों द्वारा किया जाता है। जैविक खेती में कुशल किसानों द्वारा अपनाये जाने वाले कुछ सूत्रों का वर्णन निम्नलिखित हैं –
- 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 20 से 30 मिनट गर्म जल से बीजों का उपचार करना।
- बीजामृत से बीजोपचार विधि ये विधि ज्यादातर किसानों द्वारा अपनाया जाता है।
बीजामृत बनाने की विधि –
50 ग्राम गाय का गोबर + 50 मिली लीटर गाय का मूत्र + 50 मिली गाय का दूध + 2 से 3 ग्राम चूना को 1 लीटर पानी में मिलाकर रात भर के लिए छोड़ दिया जाता है। इसके बाद सुबह इस घोल का प्रयोग बीजोपचार के लिए किया जाता है।
- गौ- मूत्र अथवा गौ- मूत्र -दीमक टीला मृदा पेस्ट का उपयोग करना।
- 10 ग्राम बीज की दर से 250 ग्राम हींग से बीज उपचार।
- हल्दी पाउडर को गौ -मूत्र में मिलाकर बीज उपचार करना।
- पंचगव्य सत (गाय का दूध +दही +घी + गोबर +जल) घोल से बीजोपचार।
- दशपर्णी सत (नीम + तुलसी + गेंदे + सीताफल +धतूरा + करंज +बेल +आक +कनेर +पपीता की पत्तियों को पीस कर पानी में मिलाकर घोल बनाना) से बीजोपचार।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी (4 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से ) स्यूसोडोमोनास (100 ग्राम प्रति किलो बीज के दर से) बीजोपचार के लिए प्रयोग करना।
- जैव उर्वरक (राइजोबियम +पीएसबी) विधि से बीजोपचार।
Method of making Liquid Fertilizer तरल खाद बनाने की विधि
तरल खाद बनाने के कुछ लोकप्रिय विधियाँ निम्नलिखित हैं –
संजीवक – 100 किलोग्राम गाय का गोबर + 100 मिली गाय का मूत्र + 500 ग्राम गुड़ + 300 लीटर जल के मिश्रण को 500 लीटर क्षमता वाले मुँह बंद ड्रम में रख कर सड़ने के लिए 10 दिनों के लिए छोड़ दें। इसके बाद 20 गुना पानी मिलाकर एक एकड़ खेत की मिटटी पर स्प्रे/ छिड़काव करें या जल के साथ प्रयोग करें।
जीवामृत – 10 किलोग्राम गाय का गोबर + 10 ली गाय का मूत्र + 2 ग्राम गुड़ + 2 किलोग्राम किसी दाल का आटा + 1 किलोग्राम जीवंत मृदा को 200 लीटर जल में मिलकर 5 -7 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ दें। मिश्रण को दिन में 3 बार नियमित रूप से हिलाते रहना है। इसके बाद इस मिश्रण का प्रयोग 1 एकड़ खेत में सिंचाई जल के साथ करें।
पंचगव्य – गाय का गोबर 1 किलोग्राम + गाय के गोबर का घोल 4 किलोग्राम +गौ – मूत्र 3 लीटर + गाय का दूध 3 लीटर + छाछ 2 लीटर + गाय का घी को मिलाकर 7 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ दें। प्रतिदिन नियमित रूप से दिन में 2 बार हिलाते रहना आवश्यक है। इसके बाद 3 लीटर पंचगव्य को 100 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत की मिटटी पर छिड़काव करे अथवा 20 लीटर पंचगव्य को सिंचाई जल के साथ एक एकड़ खेत लिए प्रयोग करें।
समृद्ध पंचगव्य – ताजा गाय का गोबर 1 किलोग्राम +गौ – मूत्र 3 लीटर + गाय का दूध 2 लीटर + छाछ 2 लीटर + 1 गाय का घी + 3 लीटर गन्ने का रस + 3 लीटर नारियल पानी + 12 पके केलों की लुगदी मिलाकर 7 दिनों तक सड़ने के लिए छोड़ दें। प्रतिदिन दिन में 2 बार हिलाते रहें इसके बाद 3 लीटर पंचगव्य को 100 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ खेत की मिटटी पर छिड़काव करे अथवा 20 लीटर पंचगव्य को सिंचाई जल के साथ प्रयोग करें।
Pesticide management कीटनाशक प्रबंधन
जैविक कृषि के लिए कीटनाशक प्रबंधन करने की विधि निम्नलिखित है –
जुताई व्यवस्था – रोग रहित बीज तथा प्रतिरोधी प्रजातियां जैविक कृषि में कीट नाशी जिव से फसल के बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है। जैव विविधता का रख -रखाव , बहु फसल चक्र, प्रभावी फसल चक्र , कीटों के प्राकृतिक वास में बदलाव एवं ट्रैप फसल के प्रयोग करने के माध्यम से फसल को नुकसान पहुँचाने वाले जीवों की जनसँख्या पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
यांत्रिक विकल्प – पौधों के रोगग्रस्त भाग एवं रोगग्रस्त पौधों को अलग हटाना, कीटों का अंडा, लार्वा समूहों को एकत्रित करके नष्ट करना, चिड़ियों के बैठने के स्थान की स्थापना करना, लाइट ट्रैप, चिपचिपी रंगीन पट्टी तथा फैरोमैन ट्रैप्स आदि विधियां कीट प्रबंधन की सबसे असरदार तरीके हैं।
जैविक विकल्प – नाशी जीवों का शिकार करने वाले जीव -जंतु और प्रतिरोधी प्रजातियां नाशी जीव नियंत्रण का प्रभावी तरीका है। ट्राइकोग्रामा 40 -50 हज़ार अंडे/ हैक्टेयर, चैलोनस ब्लैक बर्नी 15 -20 हज़ार अंडे/हैक्टेयर एपानटेलिस 15 -20 हज़ार अंडे/हेक्टेअर तथा काइसोपरला के 5 हज़ार अंडे/हेक्टेअर बुवाई के 15 दिनों बाद तथा नाशी जीवों का भक्षण करने वाले जीव -जंतु एवं अन्य परजीवी बुवाई के 30 दिनों बाद प्रयोग करने से नाशी जीव प्रबंधन में मदद मिलती है।
Use of Biopesticides जैविक कीटनाशक नाशक का प्रयोग
ट्राइकोडर्मा विरिडी / ट्राइकोडर्मा हरजिएनम / स्यूडोमोनास 4 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से या तीनों कीटनाशकों को संयुक्त रूप से प्रयोग करने से ज़्यदातर मृदा एवं बीज जनित रोग प्रबंधन में असरदार सिद्ध होता है। बवेरिया वैसियना, मेटरीजियम,एनीसोप्लीआई आदि का प्रयोग करने से विशेष प्रकार के नाशीजीव प्रबंधन में मदद मिलती है। बैसिलस बैक्टीरिया के नाशीजीव नाशक कुछ अन्य प्रकार के कीटों के विरुद्ध प्रभावि हैं।
विषाणु जैव कीटनाशक बैक्यूलोकरस समूह के विष्णु जैसे – ग्रेनुलोसिस वायरस तथा न्यूक्लियर पोली हाइड्रोसिस वायरस का प्रयोग हैलिकॉवरपा आर्मीजोरा तथा स्पीडोपटरा लिटूरा नाशी जीव के नियंत्रण के लिए किया जाता है।
वनस्पति कीटनाशक – बहुत से पेड़ – पौधे कीटनाशक के गुणों से युक्त होते हैं। जिनमें नीम के पेड़ का प्रयोग सर्वाधिक किया जाता है। नीम का वृक्ष लगभग 200 प्रकार नाशी जीवों के प्रबंधन में प्रभावी होता है। जिनमें ग्रास हॉपर, लीफ हॉपर, प्लांट हॉपर, एफिड, जैसिड, मौथ, इल्ली, बीटल , लार्वा, कैटरपिलर,कौकिसकन बीन बीटल, बटरफ्लाई,कोलोरेडो पोटेटो बीटल तथा डायमंड बैक मोथ, सफ़ेद मक्खी, मिलीबग,धान की हरी पट्टी का हॉपर, स्पाइडर के प्रबंधन के लिए नीम अर्क अधिक असरदार है।
अन्य नाशी जीव प्रबंधन सूत्र
एक लीटर गौ – मूत्र को 20 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से अनेक रोगाणुओं एवं कीट प्रबंधन में मदद मिलती है।
सड़े हुए छाछ का पानी – इसका प्रयोग सफ़ेद मक्खी एवं एफिड के नियंत्रण में असरदार होता है।
दशपर्णी सत – 5 किलो नीम की पत्ती + 2 किलो निर्गुन्डी के पत्ते + 2 किलो सर्पगंधा के पत्ते + 2 किलो गुडुची के पत्ते + 2 किलो कस्टर्ड एप्पल के पत्ते +2 किलो एरंड पत्ते + 2 किलो आक के पत्ते + 2 किलो कनेर के पत्ते + 2 किलो करंज के पत्ते + 2 किलो हरी मिर्च की लुगदी + 250 ग्राम लहसुन की लुगदी + 5 लीटर गौ – मूत्र + 3 किलो गाय का गोबर को 200 लीटर पानी में मिलाकर कुचलने के बाद 1 महीने तक सड़ने के लिए छोड़ दें। इस दौरान प्रतिदिन नियमित रूप से दिन में 2 -3 बार हिलाते रहना है। इसके बाद मिश्रण को अच्छी तरह कुचलने के बाद सत को छान कर अलग कर लें। इस सत/ अर्क को 6 महीने तक स्टोर किया जा सकता है। पूरे मिश्रण का प्रयोग 1 एकड़ खेत में कीट नियंत्रण के लिए पर्याप्त है।
नीमास्त्र – 2 किलो नीम की पत्तियाँ पानी में कुचली हुयी + 5 लीटर गौ -मूत्र + 2 किलो गाय का गोबर मिलाकर 24 घंटे तक सड़ने के लिए छोड़ दें। इस दौरान घंटे के अंतराल में हिलाते रहें। इसके बाद निचोड़ कर मिश्रण को छानने के बाद अर्क अलग कर लें। इस सत में 100 लीटर पानी मिलाकर पतला करने के बाद फसल की पत्तियों पर छिड़काव करें। इसे चूसने से कीटों तथा मिलीबग को फसलों दूर करने में मदद मिलेगी। यह पूरा मिश्रण 1 एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है।
ब्रहमास्त्र – 3 किलो नीम की पत्तियों को गौ -मूत्र में कुचले तथा 2 किलो कस्टर्ड एप्पल पत्ते +2 किलो अनार के पत्ते + 2 किलोपपीते के पत्ते + 2 किलो अरंडी के पत्ते + 2 किलो अमरूद के पत्ते को पानी में कुचलें। अब दोनों मिश्रण को एक साथ मिलाकर थोड़ी -थोड़ी देर के अंतराल में मिश्रण आधा होने तक 5 बार उबालें। इसके बाद 24 घंटे तक रखने के बाद छानकर सत अलग कर लें। इस अर्क को 6 महीने तक बोतल में स्टोर किया जा सकता है। इस अर्क की 2 -2 .5 लीटर मात्रा को 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करने से तने एवं फल को नुकसान पहुँचाने वाले कीटों के नियंत्रण में मदद मिलती है। पूरे आरक की मात्रा का प्रयोग 1 एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है।
आग्नेयास्त्र – 1 किलो बेशरम पत्ती + 500 ग्राम हरी तीखी मिर्च + 500 ग्राम लहसुन + 500 ग्राम नीम की पत्ती को 10 लीटर गौ -मूत्र में कुचलें इसके बाद मिश्रण आधा रहने तक उबालें। फिर सत को निचोड़ कर छानने के बाद शीशे या काँच के बोतल में स्टोर करें। 2 -3 लीटर सत में 100 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। ये पूरा मिश्रण 1 एकड़ खेत के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस मिश्रण के छिड़काव से फसल के तना, फल तथा फली छेदक एवं पत्ती लपेट कीट के नियंत्रण में प्रभावी है।
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